उढो़ लाल अब अन्तर मन घो लो
शक्तीशाली हो
अनगिनत रौलियो मे क्यो,दिशा विहीन?
पृचर करो बुद्घि और बल रखो शांत मन
गुमराह,गुमनाम रहोगे तो
अविष्कार-आकार गढेगा कौन ?
तुम ही बल,तुम से ही वैभव
वरज़िश कृीड़ा,पदक,परचम
बलशाली, गौरवशाली बनो
न पथ इसके विपरीत चुनो।।
अलका माथुर
३०.८.२०१८
शक्तीशाली हो
अनगिनत रौलियो मे क्यो,दिशा विहीन?
पृचर करो बुद्घि और बल रखो शांत मन
गुमराह,गुमनाम रहोगे तो
अविष्कार-आकार गढेगा कौन ?
तुम ही बल,तुम से ही वैभव
वरज़िश कृीड़ा,पदक,परचम
बलशाली, गौरवशाली बनो
न पथ इसके विपरीत चुनो।।
अलका माथुर
३०.८.२०१८