Saturday, 16 December 2017

डर (कविता # अपराध # कविता # अलका माथुर

पांच दरवाजों के पीछे
अँधेरी कोठरी
कई तालों के अन्दर
माँ मुझे छिपा कर
खाना खिलाती
सिर पर हाथ फेर
बार बार बहलाती
खुद को मुझको
कुछ भी नहीं
होने देगी!!
दिल धड़कने की
आहट से डर
चीर अँधेरे
तालों से हो कर
परछाईं उसकी आ जाती
कई सवाल
क्यों कैसे
समय किसका ख़राब
तुमको तो मरना ही था
मैने क्यों बेकाबू हो
गुस्से में पागल कर
झगड़ा बड़ा
होश गवां
तुम्हें मार
आप गवाया!!

अल्का माथुर
16 .12 .2017

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