Sunday, 3 December 2017

कविता ( ये मैं हूँ ,या मेरा तन है)# कविता # अलका माथुर

ये मैं हूँ ,या ये मेरा तन है ?

हर भाव का दर्पण है , हर एहसास का ये साथी है!
ये मैं हूँ , या ये मेरा तन है ?

इसी के साथ जीवन है, इसी की बात जीवन है !
गुरुर है किसी का कभी, मेरी मज़ाक का कारण है !!

श्रृंगार इसकी चाहत है , हर भोग का ये भागी है !
सजावट कितनी भी करलो, तन है , तो , बिमारी है!!

इन्द्रियों की चाल से चलता, फँसता और फंसाता है !
जल के ख़ाक होने तक, सांसो का ताना बाना है !!

ताज ये पहनता है , सूली पर लटकाया इसको जाता है !
स्वर्ण हिरण पाने की ज़िद में, राम सा वर खो देता है  !!

पहचान इसी तन से होती है, तस्वीरों में बच जाती है !
यादों में जो बच जाये , वो मैं हूँ , या मैं ये बस एक तन हूँ।।

03.12.2017
को
अलका माथुर
के मन से


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