Friday, 24 April 2020

डर # कविता # र्धम #अलका माथुर # समाजिक #देश

डर मुझे ही क्यों डरा रहा है
मुझे ही असर होगा इसका
क्यों रात दिन सताने लगा है
किस तरह की हवा चलपढ़ीहै
डर ही डराने लग गया है
बाल काटने  दाड़ी  बढ़ाने से डरता है
कुछ भी करने से चूकता नहीं है
विचारों में भटकनें  लगा है
अपनों की परवाह भूल गया है
रंजिशों को पालने लगा है
दम खम दिखाने लगा है
जड़े हवा में आ गई है
हवाएं डर बढ़ाने लगी है
डर ही डर बन गया है
अलका माथुर

Tuesday, 21 April 2020

लाल मेरे # युवा # कविता # देश प्रेम #अलका माथुर #वीरों को नमन

लाल मेरे

रक्त का प्रवाह तेज
धमनियों मे बह चला
आंख के आगेे अन्धेरा
दिल रौशनी से भरा
लाल की लाली से जगमग
हर किनारा हो गया

 रक्त का   प्रवाह तेज
ह्रदय धोकनी सा बजा
फतह को फतह करता
आंचल की लाज बचा
नजर नजर देख रहा
लालिमा है लाल रंग भर

फूल फल फला फूला
चमन चमन अपना वतन
चलना खिलना चलना चमकना
लाल लाल ललकार  लाल
 करतव कर कर कमाल
हर लाल लाज लाल हर

अलका माथुर
21.04.2020

Saturday, 4 April 2020

धिक्कार मुझे # कविता # कुछ करने की ललक # अलका माथुर

धिक्कार है ऐसे मानव तन पर
प्रकृती सा जो चित्रकार नहीं
बेकार शक्ती मेरे मानव तन की
देश मे गर कुछ निर्माण न हो
रोजी ,रोटी सन्साधन को
देश पर बोझ बना बैढूं....
जवान हूँ,लालच से लाचार हूँ पर
आँखें है, सुख ढूढती रहती पर
पैर है, तरक्की के पथ ,बढते नहीं पर
दिमाक है, आलस्य मे फंसा हुआ मगर
सोच है, रूढिवादि विचारो मे उलझी बस
कार्य बहुत कर सकता हूँ, नीद से उढ़ जाऊ जब।।
अलका माथुर
०४.०४.२०२०