Saturday, 4 April 2020

धिक्कार मुझे # कविता # कुछ करने की ललक # अलका माथुर

धिक्कार है ऐसे मानव तन पर
प्रकृती सा जो चित्रकार नहीं
बेकार शक्ती मेरे मानव तन की
देश मे गर कुछ निर्माण न हो
रोजी ,रोटी सन्साधन को
देश पर बोझ बना बैढूं....
जवान हूँ,लालच से लाचार हूँ पर
आँखें है, सुख ढूढती रहती पर
पैर है, तरक्की के पथ ,बढते नहीं पर
दिमाक है, आलस्य मे फंसा हुआ मगर
सोच है, रूढिवादि विचारो मे उलझी बस
कार्य बहुत कर सकता हूँ, नीद से उढ़ जाऊ जब।।
अलका माथुर
०४.०४.२०२०

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