Tuesday, 3 April 2018

न माँ की गोद , न पिता का संग (कविता)# अन्त # चंद याद #

पुरानी देह हारी, अंग अंग धोखा दे रहा !
चरम पर पीड़ा हुई, मस्तिष्क भरम में रहा !
पुतलिया ढक भी गई ,मोह भंग होने चला !
साँस बंद हो गई ,ख़ाक बाकी रह गई !
तस्वीर को माला पहना , समय आगे चल पड़ा ।।

अल्का

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