Tuesday, 10 April 2018

विचार| (कविता)# दाम्पत्य # आचरण #कविता # अलका माथुर

सोच मेरी कभी,उनसे मिलती नहीं है!
दुख उन्हें देती , मैं सोचती ही क्यों हूँ ।

अबला बने रहना , अक्सर ठीक है !
बहादुरी किसे दिखती है बेबसी के आईने में।

विचार तरंगों से अक्सर , टीस उठती है !
द्रण चटटानों से , टकरा कर टूटती बिखरती है।

वहाव तेज़ हो , तभी रास्ता बदलती है !
किनारों से बंधी , अनमनी नदिया बहती है।

अल्का माथुर
10 . 4 . 2018

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