सोच मेरी कभी,उनसे मिलती नहीं है!
दुख उन्हें देती , मैं सोचती ही क्यों हूँ ।
अबला बने रहना , अक्सर ठीक है !
बहादुरी किसे दिखती है बेबसी के आईने में।
विचार तरंगों से अक्सर , टीस उठती है !
द्रण चटटानों से , टकरा कर टूटती बिखरती है।
वहाव तेज़ हो , तभी रास्ता बदलती है !
किनारों से बंधी , अनमनी नदिया बहती है।
अल्का माथुर
10 . 4 . 2018
दुख उन्हें देती , मैं सोचती ही क्यों हूँ ।
अबला बने रहना , अक्सर ठीक है !
बहादुरी किसे दिखती है बेबसी के आईने में।
विचार तरंगों से अक्सर , टीस उठती है !
द्रण चटटानों से , टकरा कर टूटती बिखरती है।
वहाव तेज़ हो , तभी रास्ता बदलती है !
किनारों से बंधी , अनमनी नदिया बहती है।
अल्का माथुर
10 . 4 . 2018
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