Saturday, 2 June 2018

चर्चा संग चटकारे # (यातृा पर कविता) # HINDI # POEM ON TRAIN JOURNEY#कविता #अलका माथुर


चर्चा संग चटकारे # रेल यात्रा # मजेदार #

यात्रा चलती,चर्चा चलती, उसमें लेते सब चटकारे !
राजनीति में सारे, अवब्ल बच्चे बूढे ,जवाँ वक़्त के मारे!
चार जुड़े एक दल के,कुछ विरोधी हल्के पड़ते बेचारे !
चरम उत्तेजित स्वर ,ऊपर नीचे होते,आनंद वही लहराते !!

कान में ठूस रहें, प्लग ,गीतों में मगन ,दिखलाते !
हाथ में चिप्स ,कुरकुरे ,इन्द्रियों को सहलाते रहते!
मुश्किल से खुद को ,    चर्चा से दूर रख पाते !
माथे पर बल पड़ते कभी, कभी सर असहमती में हिलाते!!

यात्रा चलती , चलता शिकायतों का दौर,होते शिकार अनजाने!
कोई पीढ़ी,कभी रिश्तेदार, नेता, जिसमें बढ़ते ,मिलते चटकारे!
अपने करीबी की ही कर बुराई,  अनजानों से पीठ थापक्वाते !
अपना पक्ष, अपनी अदालत , अपने ही गुण गान, किसे दिखते!!

गंदगी फैलाते जाते, दोष दूसरे पर मढ़ने ,है तो सरकारें !
बच्चे को पीटना भी पड़ जाता, क्या कहेंगे ,देखने वाले !
घर की धमा चोकड़ी किसने देखी, इम्प्रेशन क्यों बिगाड़े !
उनकी शो बाजी में,बच्चा वंछित रखे,  न ले वो चटकारे !!

खान पान के तेवर, चटनी ,अचार,सब्जी पूड़ी,महक बिखेरते!
कभी चाय चाय की आवाजें ,चने मटर की चाट बनाते दिवाने!
साथ बैढे वो भी,संग को तरसे जिनके, या एकदम अनजाने !
यात्रा टाइम पास हो, सुख ही सुख जीवन में लाते ये चटकारे।।

अल्का माथुर
3 जून 2018

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