Saturday, 3 December 2016

बथुआ (एक साग,एक पुराणिक कथा)


 " दुर्योधन की मेवा त्यागी, साग विदुर घर खायो "

ये प्रसंग आपने सुना होगा ,महाभारत में भगवान कृष्ण संधि प्रस्ताव ले कर जाते है तो दुर्योधन के घर भोजन को छोड़ कर विदुर जी की कुटिया में साग खाते है।
ये बथुए के साग की बात कही गई है।
बिजनॉर के पास विदुर कुटी अब भी है और बथुआ जो हर साल लगने वाला झाड़ है ,जिसकी लम्बाई 12 से20 सेंटीमीटर तक होती है।
विदुर कुटी में वही पुराने बथुए के पेड़ नुमा बड़े बड़े बथुए के छाड़ लगे है।वो बारह महीने फलता है ,12 फिट से भी ऊँचे पेड़ है।
वहाँ हमारे परिवार के गुरूजी रहते थे।कभी ये गंगा किनारे था अब गंगाजी बहुत दूर हट गई है।

बथुए को साफ करने के लिए सारी जड़ो को और अगर फूल गए हो उनको भी निकलना होता है,फूलो में अक्सर कीड़े हो जाते है।भगोने में पानी भरें और उसमे साफ किया साग धोएं जिससे साग पर से मिटटी धुल जायेगी और सब निचे बैठ जायेगी।

बथुए का साग - साफ किये बथुए को कुकर में उबालें।
                    1 चम्मच तेल गरम करें उसमे, उबले साग को हींग ,जीरे और                      नमक मिर्च डाल कर भूनें।
                    चाहें तो लहसुन अदरक का भी छौंक दे सकते है।
                    तेल भी सरसों का हो तो और अच्छा लगता है।
बथुए की रोटी - भुने हुए साग को ही मले हुए आटे में भर कर बथुए की रोटी                          बनाते है।

उबले बथुए को मिक्सि में या सिल पर पीस लें।पिसे हुए बथुए को दही में मिलाने से बढ़िया बथुए का रायता बन जायेगा।स्वादनुसार नमक ,मिर्च और भुना जीरा मिलायें।

लीजिये तैयार है पौष्टिक रोटी ,रायता और स्वादिष्ट बथुए का साग ।


उबले साग को  आटे में मल  कर भी हरे रंग की बथुए की पूरी बन सकती है।

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