Monday, 5 December 2016

आँखे (कविता)

                      आँखे

आँखों से   क्या
 फसाना
कोंख के अंधेरे से
 जन्मे दो नयन तारा
आँखों से लुभाता
गोदी में आने को न्योता
मासूमियत के बोल
शैतानी का खुलासा
जवानी की चंचलता
उत्तेजना का खामियाजा
बंदिशों के अंगार
आँखों से बयाँ उम्र की नज़ाकत

चालीस पहुँचता  धुंधला  आसपास
प्रत्यक्षअप्रत्यक्ष देखती आँखे
हम देखें
जो मन को भाये
मन की भी प्रबल आँखे
जिन के पास सिर्फ मन की आँखे
वो देखें दुर्लभ बातें
जो हम अनदेखा कर जाये

थक कर सोये जब इंसान
जहाँन तकती फिर भी खुली आँखे
कुछ बची कसक बाकि
कुछ अंधूरे से अरमान।
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अलका माथुर

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