Sunday, 4 December 2016

कविता (हार )

                 हार  न
 हार को प्रहार मत बनाना तुम
मन पर गहरी चोट बुरी है
 जब तक कांटा धंसा रहेगा
जहर ज़हन में दबा रहेगा
 उतना ही दर्द पाले रहना
जो जीत की जिद जिन्दा रक्खें
 हार जीत में ज़रूर बदलेगी
सुधार का रास्ता ख़ोज निकालो
 इसी को दवा बना लो तुम

मतभेदो में कैसी हार जीत
बातों में कैसी चक्रव्यूह रचना
अपनों से न हो कोई रंजिश
हो अपना अपना काम भला
प्रयास भला   अंजाम भला

------/-----/-----/----------
अलका माथुर

No comments:

Post a Comment