Sunday, 7 January 2018

कविता (दाता का हिसाब)# कविता व्यंग # लोभ # अलका माथुर

तू ही दाता है,तेरे से ही माँगने आया !
मैं नादान , लोभी धन माँग बैठा !
भूल गया, तू हिसाब का कितना पक्का!!
जितना लिखा होगा उतना ही देगा दाता !
धन का तुरन्त आष्वासन मिल गया !
मैं गाड़ी समेत नाले में लुढक गया !
तुमने पौलिसी का पैसा दिलवा दिया।

दाता तो तू ही है, थोड़ा सब्र दे दिया होता !
हड़बड़ी में मन्दिर मस्जित के क्यों चक्कर लगाता?
न बेटियों को बाबाऔ के हवाले करता !
न कभी कोई मौलवी लूट पाता !
बता दो ,उन्होंने क्या माँगा था दाता !!
कितना सही हैं, मुझसे ,इनको दिलवाते रहना !
मेरे माँगने पर,धन को देना मगर -....
हड्डी पसली तुड़वा कर देना।।

6.1.2018
अल्का माथुर

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