Thursday, 12 October 2017

अहोई अष्टमी कथा और पूजन (मान्यता)# कहानी # विधी # कथा #माथुरों में पूजा

दिपावली से पहले घर की सफ़ाई की जाती है,ये सिलसिला काफ़ी पुराना है।उस समय जब जंगल से लकड़ी लाते थे और जीव जंतु हर जगह होते थे,तो घर को लीपने पोतने के बाद अष्टमी से ही दीवाली के लिए देवी देवताओं के चित्र गोबर पुती दिवार पर बनाने लगते थे।जो आज कल हम लोग कागज़ पर बनाते है या प्रिन्ट ख़रीद कर ले आते है।

सात शुभ माना जाता है ,चित्र में भी सात चीजें दिखेंगी - सात कलश ,सात राम नाम आदि।

अहोई या अनहोनी का डर जितना पहले था आज भी है!! पहले सभी लड़के युद्ध में ,व्यापार में लगे रहते व लड़कियां जंगल से लकड़ी ,फल आदि लाने में।
डर का सम्बन्ध सफ़ाई में मारे जाने वाले जिव जंतु के प्रति अपराध बोध से भी होता होगा।
ऐसा मुझे लगता है,इसी कारण से परिवार की सुरक्षा के लिए ,महिलायें करवा चौथ के चार दिन बाद अहोई अष्टमी का निर्जल व्रत रखती है ।

कथा -
एक साहूकार का पुत्र बहुत शरारती था।जितने भी जानवर उसको दिखते वह उनको बिना कारण मार दिया करता था।वो हमेशा सभी भाइयों में छोटा था ,उसको घर में प्यार के कारण कोई डांटता नहीं था और काम भी नहीं बताता था।
बड़े होने पर ,बाकी भाइयों की तरह उसका भी विवाह हो गया।उसकी पत्नी मेहनती व पूजा पाठ वाली थी।सत्या घर का सभी काम करती और गाय और बछड़ो का ख़याल रखती।सभी उससे खुश रहते थे।
सत्या की खुशियां अधिक समय नहीं चली ,उसके बच्चे नहीं जीते थे।वह अपनी गाय से बाते करती और दुःख बंटती थी,गाय भी उसकी सेवा से बहुत खुश थी व सत्या की बछड़े की सेवा से भी खुश थी।
गऊ माता ने उसको कहा तुम अष्टमी को अहोई माता से अपने बच्चों की जिंदगी मांगो।
सत्या मेहनत करती थी लेकिन क्यों की उसका पति कमाता नहीं था और उसने पुत्र नहीं दिया था,उसको सभी हिन् भावना से देखने लगे।
काम का उस पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा ,गाय उसकी मदत करती जब कोई नहीं देखता वह पूरी रसोई जादू से तैयार करती,दूध अपने आप बर्तनों में भरा रहता और भी घर के काम भी जादू से हो जाते थे।
गऊ माता की इतनी मदत से भी सत्या खुश नहीं रहती थी ,कारण उसको संतान सुख नहीं था ।गाय ने उसको अहोई माता की पूजा करने और क्षमां मांगने को कहा!
उसने अहोई अष्टमी का निर्जल व्रत रखा और उनकी पूजा की ,साल भर में उसके घर धन ,पुत्र और सुख ,शांति सब आ गए।
जैसा उसको अहोई माता ने आशीर्वाद दिया ,सबको मिले और सभी खुश रह सकें।

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