पहले जीवन की शिक्षा देने के माध्यम नहीं थे,औरत तो सिर्फ परदे में रह कर कहानियों के ही माध्यम से समझ पाती थी या उदाहरण से!
माँ कहती थी इसीलिए उन्होंने अच्छा खाना खाने के लिए और मन लगाने के लिए, बहुत सारे व्रत और नियम बना लिए ।उनमें सब साथ में मिलने बैठने लगी और किस्से कहानी को सुनने सुनाने लगी।
मेरी अम्माजी तो बीस साल पहले तक धूप और चाँद देख कर सही समय बताती थी।
उदंड लड़कियों को नियम सिखाने के लिए डराना भी जरुरी था।
अम्माजी जो कहानी सुनाती थी वो आपको भी बताती हूँ।
करवाचौथ की कहानी
कहानी - 1
सात बहनो की अकेली बहन थी,जिसको सभी बहुत प्यार करते थे।बचपन से जवानी तक उसको भाइयों ने ज़रा सी भी तकलीफ नहीं होने दी थी।
बहन की शादी भी खूब धूमधाम से करी,लाड़ प्यार के मारे भाई लोगों ने बहन और जमाई को भी अपने पास ही रख लिया।जमाई कुछ दिन में घर चला गया,करवा नहीं गई।
करवाचौथ का दिन आया बहन ने भी ,भाभियों की तरह निर्जल व्रत रखने का मन बनाया,किंतू सरगई करने को सुबह उठ ही नहीं पाई।कुछ पूजा नहीं करी ,माता गौर रानी का आशीर्वाद नहीं लिया।व्रत शुरू हुआ और उसका भूख़ के मारे बुरा हाल होने लगा।
अपनी बहन को परेशान देख भाई लोग चिंता में पड़ गए,सब चाँद जल्दी निकल आये यही प्रार्थना करने लगे।
बादल छटने पर भी चाँद नहीं दिखा,भाइयों ने एक तरक़ीब निकाली चाँद दिखाने की, एक भाई ने पेड़ पर दिया जलाया, दूसरे ने उसके आगे छन्नी पकड़ी,कोई पूजा का थाल पकड़ कर बैठा ,तो कोई उसको बुलाने दौड़ा .....चाँद निकल आया ....चाँद निकल आया।
बावली बहन भाभियों से जिद करने लगी,चलो देखो भाई बुला रहे है चाँद दिखने लगा !!
भाभी लोगों को पता था की असली में चाँद नहीं निकला है सो उनमें से एक ने भी पूजा नहीं करी,सिर्फ बहन ने पूजा करी ,बया मनसा और मेहरी दादी को देने लगी ,उन्होंने कहा ,"अपने ससुराल वालों को देना "।
और भी कोई उसका बायना लेने को तैयार नहीं हुआ।
बायना भाई लोगों ने ले लिया और बहन को खाना खाने बिठा दिया ,खाना खाते समय बदशगुन होने लगें... पहले गस्से में ही बाल आ गया ...दूसरे गस्से को मुँह में रक्खा तो छींक से बाहर निकल गया ...और तीसरा गस्सा खाते ही उसके ससुराल से उसके पति की मूर्छित होने की ख़बर आ गई!!
वह समझ गई की उससे घोर अपराध हुआ है,माँ से बिदा लेने लगी ,"माँ मुझसे क्याअपराध हुआ है?"
माँ ने समझाया ,"तूने नासमझी से काम लिया है तुमको अब मायके की सुख सुविधा छोड़ ससुराल के नियम पालने होंगे और उनकी सब विपत्तियों को अपने ऊपर लेना होगा।"
रास्ता कठिन होगा,हम सब तुम्हारे पास नहीं होंगे ,बस, हमारा आशीष ही तुम्हारे साथ जायेगा।तुम्हे रस्ते में तीन गन्दी से कपड़ो में तीन बुढ़िया दिखेंगी उन से घिन नहीं करना ,उनके पैर छूना और उनसे वरदान लेना।नींद,भूँख और आस ये जिसको मिल गई उसको जीवन मिल गया!!!
बहन करवा चल पड़ी अपने ससुराल --- रस्ते में उसको तीनों बुढ़िया मिली जिनसे उसने आशीर्वाद प्राप्त किया।बिना सोयें वो रात दिन चलती रही,जो लड़की व्रत रख कर सब्र नहीं कर पा रही थी उसको कुछ भी भूंख नहीं लग रही थी,आशा और मन में विशवास था की सब ठीक हो जायेगा।
आगे चलने पर उसने देखा की एक देवी शिला गांड रही है सूनसान जगह ,वो दौड़ कर उनके पास गई और उनके पैर पकड़ लिए,आप ये शिला क्यों दफन कर रहीँ है?
"एक लड़की ने अपनी नादानी से अपना परिवार और रिश्ते खो दिए है "
"क्या करने से उसको अपना परिवार और पति वापस मिल सकता है"
वो देवी पार्वती थी उन्होंने कहा," तुम्हे माँ के कहे अनुसार परिवार की सारी मुसीबत अपने ऊपर लेनी होगी, तुम बावली सी बन जाओ ,लोग तुम्हे पागल समझ कर सब काम करने देंगे,हर चौथ को व्रत करना और कार्तिक माह में ही चाँद के दर्शन करना "
जाओ तुम्हें में आशीष देती हूँ तुम अपने पति और परिवार को सुख और समृधि दे सको,सदा सौभाग्यवती रहो।
जिसको माता खुद आशीष दें उसका कोई कैसे कुछ बिगाड़ पायेगा,वो शीघ्र अपने ससुराल पहुँच गई और बावलों की तरह पर्दा भूल कर पति के पास पहुँच गई।सबको हटा दिया और खुद की सब काम करने लगी।साल भर तक पूजा पाठ और सबकी नजर बचा कर सारे घर के काम भी करने लगी।उसका पति भी ठीक था और परिवार में और धन व खुशिया आने लगी।
उसकी नन्द की शादी तय हो गई,करवा अभी भी परिवार के ऊपर आने वाले दुखों से उनको बचाने के लिए बावली बनी रही।
हर काम में पहले खुद सामने आ खड़ी होती पहले मैं...
मेहंदी ,सुहाग सब पहले उसको चढ़ा फिर नन्द को..हर बार हो नन्द को विष और दरवाजा गिरने जैसी धटनाओं से बचाती गई।
बिदा के समय भी बोली मैं साथ जाऊँगी, बावली है सोच कर किसी ने रोका नहीं ,रात को भी नवविवाहित के ही साथ रही ।
सब लोग सो गये ये पहरा देती रही,एक साँप फन फैला कर दूल्हे को डसने आ गया ।उसने एक ही वार में उसको मार दिया और टोकरी के निचे दबा दिया और सो गई ।
सुबह सभी जाग गए ,करवा सोती रही।किसी ने कहा उस बाबली को तो उठाओ।जब उसको उठाने लगे तो उसने कहा मेरे पति और पुरे परिवार और समाज को इकट्ठा करो तब उठूंगी।
जब पति को जगाया गया वो भी उठ बैठा सभी लोग एकत्रित हो गए तो वह उठी और खुशी से बोली,"मैं सबसे माफ़ी माँगती हूँ ,मुझसे बड़ी भूल हो गई थी जिससे आप सब पर कहर बरस रहा था ,इसी लिए अपनी भूल सुधारने और मुसीबतों को अपने ऊपर लेने के लिए मैं बाबली बनी थी इतना कह कर उसने टोकरी हटा कर साँप दिखाया।
सबने उसको अपना लिया और उसके बाद वो अपने पति और परिवार के साथ सुख से रहने लगी।
और पहले गणेशजी की कहानी जरूर सुनाती थी।
करवा,मिट्टी के बर्तन का नाम होता है जिसमे अनाज भर कर रखा जाता है और जिसके बीच में जरूरत पड़ने पर अनाज निकाल जा सके,जगह बनी होती है।इसीलिए उसी तरह का करवा पानी रखने और अर्क देने के लिए लिया जाता है।
माँ कहती थी इसीलिए उन्होंने अच्छा खाना खाने के लिए और मन लगाने के लिए, बहुत सारे व्रत और नियम बना लिए ।उनमें सब साथ में मिलने बैठने लगी और किस्से कहानी को सुनने सुनाने लगी।
मेरी अम्माजी तो बीस साल पहले तक धूप और चाँद देख कर सही समय बताती थी।
उदंड लड़कियों को नियम सिखाने के लिए डराना भी जरुरी था।
अम्माजी जो कहानी सुनाती थी वो आपको भी बताती हूँ।
करवाचौथ की कहानी
कहानी - 1
सात बहनो की अकेली बहन थी,जिसको सभी बहुत प्यार करते थे।बचपन से जवानी तक उसको भाइयों ने ज़रा सी भी तकलीफ नहीं होने दी थी।
बहन की शादी भी खूब धूमधाम से करी,लाड़ प्यार के मारे भाई लोगों ने बहन और जमाई को भी अपने पास ही रख लिया।जमाई कुछ दिन में घर चला गया,करवा नहीं गई।
करवाचौथ का दिन आया बहन ने भी ,भाभियों की तरह निर्जल व्रत रखने का मन बनाया,किंतू सरगई करने को सुबह उठ ही नहीं पाई।कुछ पूजा नहीं करी ,माता गौर रानी का आशीर्वाद नहीं लिया।व्रत शुरू हुआ और उसका भूख़ के मारे बुरा हाल होने लगा।
अपनी बहन को परेशान देख भाई लोग चिंता में पड़ गए,सब चाँद जल्दी निकल आये यही प्रार्थना करने लगे।
बादल छटने पर भी चाँद नहीं दिखा,भाइयों ने एक तरक़ीब निकाली चाँद दिखाने की, एक भाई ने पेड़ पर दिया जलाया, दूसरे ने उसके आगे छन्नी पकड़ी,कोई पूजा का थाल पकड़ कर बैठा ,तो कोई उसको बुलाने दौड़ा .....चाँद निकल आया ....चाँद निकल आया।
बावली बहन भाभियों से जिद करने लगी,चलो देखो भाई बुला रहे है चाँद दिखने लगा !!
भाभी लोगों को पता था की असली में चाँद नहीं निकला है सो उनमें से एक ने भी पूजा नहीं करी,सिर्फ बहन ने पूजा करी ,बया मनसा और मेहरी दादी को देने लगी ,उन्होंने कहा ,"अपने ससुराल वालों को देना "।
और भी कोई उसका बायना लेने को तैयार नहीं हुआ।
बायना भाई लोगों ने ले लिया और बहन को खाना खाने बिठा दिया ,खाना खाते समय बदशगुन होने लगें... पहले गस्से में ही बाल आ गया ...दूसरे गस्से को मुँह में रक्खा तो छींक से बाहर निकल गया ...और तीसरा गस्सा खाते ही उसके ससुराल से उसके पति की मूर्छित होने की ख़बर आ गई!!
वह समझ गई की उससे घोर अपराध हुआ है,माँ से बिदा लेने लगी ,"माँ मुझसे क्याअपराध हुआ है?"
माँ ने समझाया ,"तूने नासमझी से काम लिया है तुमको अब मायके की सुख सुविधा छोड़ ससुराल के नियम पालने होंगे और उनकी सब विपत्तियों को अपने ऊपर लेना होगा।"
रास्ता कठिन होगा,हम सब तुम्हारे पास नहीं होंगे ,बस, हमारा आशीष ही तुम्हारे साथ जायेगा।तुम्हे रस्ते में तीन गन्दी से कपड़ो में तीन बुढ़िया दिखेंगी उन से घिन नहीं करना ,उनके पैर छूना और उनसे वरदान लेना।नींद,भूँख और आस ये जिसको मिल गई उसको जीवन मिल गया!!!
बहन करवा चल पड़ी अपने ससुराल --- रस्ते में उसको तीनों बुढ़िया मिली जिनसे उसने आशीर्वाद प्राप्त किया।बिना सोयें वो रात दिन चलती रही,जो लड़की व्रत रख कर सब्र नहीं कर पा रही थी उसको कुछ भी भूंख नहीं लग रही थी,आशा और मन में विशवास था की सब ठीक हो जायेगा।
आगे चलने पर उसने देखा की एक देवी शिला गांड रही है सूनसान जगह ,वो दौड़ कर उनके पास गई और उनके पैर पकड़ लिए,आप ये शिला क्यों दफन कर रहीँ है?
"एक लड़की ने अपनी नादानी से अपना परिवार और रिश्ते खो दिए है "
"क्या करने से उसको अपना परिवार और पति वापस मिल सकता है"
वो देवी पार्वती थी उन्होंने कहा," तुम्हे माँ के कहे अनुसार परिवार की सारी मुसीबत अपने ऊपर लेनी होगी, तुम बावली सी बन जाओ ,लोग तुम्हे पागल समझ कर सब काम करने देंगे,हर चौथ को व्रत करना और कार्तिक माह में ही चाँद के दर्शन करना "
जाओ तुम्हें में आशीष देती हूँ तुम अपने पति और परिवार को सुख और समृधि दे सको,सदा सौभाग्यवती रहो।
जिसको माता खुद आशीष दें उसका कोई कैसे कुछ बिगाड़ पायेगा,वो शीघ्र अपने ससुराल पहुँच गई और बावलों की तरह पर्दा भूल कर पति के पास पहुँच गई।सबको हटा दिया और खुद की सब काम करने लगी।साल भर तक पूजा पाठ और सबकी नजर बचा कर सारे घर के काम भी करने लगी।उसका पति भी ठीक था और परिवार में और धन व खुशिया आने लगी।
उसकी नन्द की शादी तय हो गई,करवा अभी भी परिवार के ऊपर आने वाले दुखों से उनको बचाने के लिए बावली बनी रही।
हर काम में पहले खुद सामने आ खड़ी होती पहले मैं...
मेहंदी ,सुहाग सब पहले उसको चढ़ा फिर नन्द को..हर बार हो नन्द को विष और दरवाजा गिरने जैसी धटनाओं से बचाती गई।
बिदा के समय भी बोली मैं साथ जाऊँगी, बावली है सोच कर किसी ने रोका नहीं ,रात को भी नवविवाहित के ही साथ रही ।
सब लोग सो गये ये पहरा देती रही,एक साँप फन फैला कर दूल्हे को डसने आ गया ।उसने एक ही वार में उसको मार दिया और टोकरी के निचे दबा दिया और सो गई ।
सुबह सभी जाग गए ,करवा सोती रही।किसी ने कहा उस बाबली को तो उठाओ।जब उसको उठाने लगे तो उसने कहा मेरे पति और पुरे परिवार और समाज को इकट्ठा करो तब उठूंगी।
जब पति को जगाया गया वो भी उठ बैठा सभी लोग एकत्रित हो गए तो वह उठी और खुशी से बोली,"मैं सबसे माफ़ी माँगती हूँ ,मुझसे बड़ी भूल हो गई थी जिससे आप सब पर कहर बरस रहा था ,इसी लिए अपनी भूल सुधारने और मुसीबतों को अपने ऊपर लेने के लिए मैं बाबली बनी थी इतना कह कर उसने टोकरी हटा कर साँप दिखाया।
सबने उसको अपना लिया और उसके बाद वो अपने पति और परिवार के साथ सुख से रहने लगी।
और पहले गणेशजी की कहानी जरूर सुनाती थी।
करवा,मिट्टी के बर्तन का नाम होता है जिसमे अनाज भर कर रखा जाता है और जिसके बीच में जरूरत पड़ने पर अनाज निकाल जा सके,जगह बनी होती है।इसीलिए उसी तरह का करवा पानी रखने और अर्क देने के लिए लिया जाता है।
सबको आगामी चौथ के लिए बधाई!!
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