Sunday, 2 April 2017

कविता ( नश्तर)

कल आज और कल क्यों बदले
क्यों बिखरे ,क्यों बिगड़े,पीछे छोड़ सुंदरता के पल
डग मगाते चलना सिखलाया था
चाल चलना,धोखे गड़ना कब ,क्यों सीखे तुम ..
पढ़ना लिखना कुछ बन जाना
पलट राहे ,मूर्ख बनाना सबको,क्यों सिख गए तुम..
आस्था,विशवास जगाना था तुममे
नफरत से आहत तुम ,क्यों जहर जहन में रख बैठे
परिवार,साथी साथ मजबूत
आवरण भेद टीस दिल से क्यों लगा बैठे तुम..
संस्कार,आचरण ये मेलजोल
किस कदर गुस्सा ,आक्रोश छुपा बैठे तुम...
हर नारी में माँ देखता बचपन
कितना भिन्न,कितनी हीन भावना कहाँ से पनपी..
किसी ने  किया दुलार कभी
कतरा भी शेष नहीं बाकी, सांसो का बांधे रखें तार..
सागर- गागर आकाश न बदले
सीमाओं के मानक क्यों बदल बैठे हो तुम..
दुख, दर्द,पीड़ा जीवन सब नशवर
हत्या तक कैसे चला गया था कोई नश्तर???

--//---//------/////----अलका माथुर //
2 / 3 / 2017

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