Tuesday, 10 January 2017

सूरज तेरा रूप अनूप (कविता)




  सूरज तेरा रूप अनूप


चौडे माथे पर सुन्दर बिंदी सा
चमक रहे - चंद्रमा से शीतल
पेड़ो के ऊपर छिपते दिखते
पानी पर अदभुत प्रतिबिम्ब
लाल नारंगी छटा  दिखाता
सूरज तेरा रूप अनूप

जाड़ो में गलते हाथ पाव
असहाय करते  इंतजार
धूप कहीं  नहीं
तुम जा बैठे कहीं बादलों के पार
सब परेशान तकते आसमान
कुछ देर दिखे   सूरज
  तेरा रूप अनूप

सिर पर - जब चढ़ो
नज़र कोई मिला न सके
शक्ति देखें  चोधिया गई आँखे
जीवन के तुम
अदि अंत  हे सूरज
  तेरा रूप अनूप।

_____________--_____अलका माथुर

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