यादें
बेफिक्र सुकून की चारदिवारी
मन मौजी व्यवहार
पसंद का खाना
मन चाहा गुनगुनाना
चुस्की ले के चाय पीना
जूते भेंक
फर्श पर नंगे पाव चलना
शीशे के सामने
शक्ले नकल बनाना
अख़बार फैलाना
किताबें पंलग पर इकठ्ठा करना
नॉवल पूरी करके सोना
सुबह देर से उठना
जिद करना
पीछे छोड़
घर बसाना
याद करके
आँखे नम हो जाना
बेफिक्र नही सलीका अपनाना
सहजता से नये आवरण में ढलना
मर्यादा निभाना
जीवन अनुभूति
याद अनोखी
एहसास अनोखा
क्रम माँ बेटी - बेटी माँ का।।
----/-----------/अलका माथुर
बेफिक्र सुकून की चारदिवारी
मन मौजी व्यवहार
पसंद का खाना
मन चाहा गुनगुनाना
चुस्की ले के चाय पीना
जूते भेंक
फर्श पर नंगे पाव चलना
शीशे के सामने
शक्ले नकल बनाना
अख़बार फैलाना
किताबें पंलग पर इकठ्ठा करना
नॉवल पूरी करके सोना
सुबह देर से उठना
जिद करना
पीछे छोड़
घर बसाना
याद करके
आँखे नम हो जाना
बेफिक्र नही सलीका अपनाना
सहजता से नये आवरण में ढलना
मर्यादा निभाना
जीवन अनुभूति
याद अनोखी
एहसास अनोखा
क्रम माँ बेटी - बेटी माँ का।।
----/-----------/अलका माथुर
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