Sunday, 8 January 2017

संकट चौथ (कथा ,पूजा और इस दिन बनने वाले व्यंजन)

सकट या संकट चतुर्थी  - पर गणेशजी की पूजा उपासना होती है और सभी महिलायें बच्चों की रक्षा के लिए उपवास रखती है।
पूजा के समय कही जाने वाली कहानियाँ- -
1 - एक राजा था,वह बहुत अच्छा था।उसकी प्रजा बहुत खुश थी।वहाँ कुम्हार जब भी बर्तन पकाने को आबा तैयार करते वो पकता ही नहीं था ।
सब परेशान हो गए थे।
राजा ने बहुत सोचने के बाद पुरोहित से मंतड़ा करी। पुरोहित ने कहा इसमें बली देने से ही आबा तैयार होगा।
तय हुआ की हर बार बारी बारी से परिवारों से एक को बली देनी होगी।
राजा ने फिर विचार किया और फरमान जारी किया कि हर घर से बारी बारी महीने में एक आदमी को बली के लिए भेजा जायेगा।
एक बुढ़िया अपने इकलौते बेटे के साथ रहती थी वो हर रोज़ गणेशजी की पूजा करती थी ,उसने एक सुपारी को पट्टे पर रक्खा था उनकी ही पूजा करती और कहती - सकट की सुपारी संकट काटिये।
जिस घर से बली चढ़ाई जाने की बारी होती वहां रोना पीटना मच जाता,कोई भी वापस नहीं लौट पाता।
पूरे राज्य में इसका ख़ौफ था।महिला के पुत्र की भी बारी आई ,उसने रोने के बजाय अपने पुत्र को भी सकट की सुपारी की पूजा करने कहा और विश्वास रखने को कहा, जो भी हो तुम यही जप करना ,"सकट की सुपारी संकट काटो"
गणेशजी तुम्हारी रक्षा करेंगे।
जाओ सिद्धि दाता जय गणेश ,दही मच्छी सोने का टका लाना ।
निर्धारित समय पर लड़के को आबा तैयार करके बीच में बिठाया गया।वह हाथ में सुपारी और मन में विश्वास लिए रटता रहा ,सकट की सुपारी संकट काटिये।
जब आबा खोला गया ,बालक हाथ में सुपारी लिए ,आँख बंद करे,जप ही करता रहा ,चमत्कार हो गया सब बर्तन भी पक गए और लड़का भी बच गया।
सुबह राज्य में मातम के लिए जब लोग इक्कट्ठा हुऐ तो  बालक को जिन्दा देख कर सारे राज्य में खुशियां मनाई गई।
बालक को खूब सोना चांदी दे कर घर भेजा गया।
राजा और राज्य के सभी लोगो ने तभी से माघ की चौथ को सकट का व्रत पूजन करना शुरू कर दिया।
जैसे सकट की सुपारी ने बालक के संकट काटे सबके संकट हरे!!

2 - दो भाईयों का परिवार पास पास रहता था।एक भाई अमीर था और दूसरा गरीब।अमीर भाई का परिवार दूसरे की कोई मदत नहीं करता और बुरा बर्ताव करता था।
गरीब की पत्नी जेठ के घर का काम करके ही परिवार का पेट पालती थी।पूजा अर्चना करती थी।पति शराबी हो गया था और मारपीट भी करता था।
सकट चौथ को अमीर भाई के घर बहुत सारा काम था साफ सफाई और बहैत सारे पकवान मिठाई बनाते उसको दिन भर लग गया।भूकी प्यासी वह दिन भर चाकरी करती रही।
घर में खाने के लिए कुछ भी नहीं था।बच्चों को किसी तरह मिला हुआ खाना खिला कर सुलाया।
सिर्फ बथुए के साग की पिंडलियां बना कर रखी और भगवान की पूजा करने लगी।वही बैठे उसको नींद आ गई।
रात को उसका पति आया बोला भूक लगी है।भोजन नहीं मिलने से नाराज़ हो कर उसने पत्नी को पीटा और सो गया।
वह संकट किसी तरह कम हो सोच कर रोती रही।भगवान ने स्वयं उसकी परीक्षा लेनी चाही! बोले माई भोजन दें!
ये बथुआ बचा है ,खा लो ।
गणेश जी ने सारा बथुआ खा लिया।फिर बोले कहाँ हगू?
गुस्से में उसने कहा जहाँ चाहो वही !चारों कोने पांचवी दिहली!
वह योंही आँख बंद करे पड़ी रही।
सुबह होने को हुई तो उसने सोचा उठे और घर सफाई करे और काम पर जाये नहीं तो अगले दिन भी सबको भूखे रहना पड़ेगा।
उठ कर देखती है की सारा घर हीरे जवाहरात से जगमग कर रहा है।
सबको जल्दी उठाया और सब गिनती करने लगे।
तभी जिठानी का लड़का खबर लेने आया ,चाची काम पर क्यों नहीं आई?
उसने कहलवाया की अब वो काम नहीं करेगी और तराजू मँगवा भेजा!
जिठानी को बड़ी हैरानी हुई कुछ तो है नहीं क्या तोलेगी?
उसने तराजू में राल लगा दी।
तराजू में सोना और हिरा चिपका देख तो उससे रहा ही नहीं गया।
हाल पूछने आ गई।
सारा वृतांत सुन कर बहुत खुश हो गई अगले साल माघ की सकट को उसने भी वही किया सिर्फ बथुआ बनाया और छीके पर रख दिया और घर के सबको भूख़ से परेशान किया और पति को पिटाई करने और खुद भी रोती रही!
भगवन आये और उसने छोटी की ही तरह सारी बाते दोहराती गई।
लालच और सब होते हुए भी नकल करने से भगवान ने सजा दी! कई दिनों तक घर बदबू से भरा रहा सब जगह धन के बदले हग्गी ही मिली।

गणेश जी को अपनी शक्ति अनुसार तिल और बथुए के व्यंजन बना कर भोग लगाया जाता है।



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