नारी (सामान या इंसान)
इंसान अगर होती तू!
कुछ करती,कुछ बनती,कुछ बनाती !
खुद को ख़ोज निकालती ,खुद से ।।
दहेज़ संग क्यों जाती!
अनिच्छा से नही रहती !
क्यों निर्जीव सामान सी जगह बदलती।।
तू साज सज्जा,तू मान प्रतिष्ठा,
रोबोट सी बनती, सुधरती कभी भी
भावनाओं का नहीं ताना, नही बाना बुना।।
सपनों, विचारों की उत्पत्ति कहाँ
राय मशवरे की कभी नहीं जगह
नहीं नाम,नहीं घर,न ही उसका अपना जहाँ।।
न आदि कहीं,न अंत कहीं
सिसकियों में भटकती यहाँ/वहाँ
दूसरों के समान में,वही पड़ी,डाली गई जहाँ।।
--------///----------/--------अलका माथुर
20 /3 / 2017
इंसान अगर होती तू!
कुछ करती,कुछ बनती,कुछ बनाती !
खुद को ख़ोज निकालती ,खुद से ।।
दहेज़ संग क्यों जाती!
अनिच्छा से नही रहती !
क्यों निर्जीव सामान सी जगह बदलती।।
तू साज सज्जा,तू मान प्रतिष्ठा,
रोबोट सी बनती, सुधरती कभी भी
भावनाओं का नहीं ताना, नही बाना बुना।।
सपनों, विचारों की उत्पत्ति कहाँ
राय मशवरे की कभी नहीं जगह
नहीं नाम,नहीं घर,न ही उसका अपना जहाँ।।
न आदि कहीं,न अंत कहीं
सिसकियों में भटकती यहाँ/वहाँ
दूसरों के समान में,वही पड़ी,डाली गई जहाँ।।
--------///----------/--------अलका माथुर
20 /3 / 2017
Wow...Mummy too good...
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDelete