होली का त्यौहार भी विशेष तरह की पूजा के लिए मशहूर हैं।होलिका के जल जाने की कहानी है,जो पूजा के नियम बचपन में देखें उनके बारे में सबको बताना चाहती हूँ।
कई दिन पहले से पकवान बनने के साथ ही,पूजा की तैयारियां की जाती थी।
1 गोबर से भिन्न आकर के,बीच में छेद वाले ,छोटे कंडे बना कर सुखाये जाते और उस की माला बान से गूथ कर बनाई जाती थी।क्यों - शायद अग्यारी में परिवार का योगदान !
2 - मखानों और गोले की माला बनाना। जिसको आग में चढ़ाना और फिर प्रसाद के लिए ले लेना।
3 - गन्ने के सिरे पर गेहू ,चने की बालिया बांध देना।उनको भी भुनते और भुने दानों को छील कर खाना और खिलाना।
4 - बताशों की भी माला बनाना जो ज्यादातर होली में चढ़ा कर आते थे।
पूजा के लिए जाते समय कौन क्या उठाएगा उसकी लड़ाई का भी अपना ही आनंद होता था।होली जलाने नए दड़िये पहन कर जाते इस लिए रंग शुरू होने के पहले जोश और भागमभाग मचती!!
इस सबके साथ भुने छोलियों से हरे चने अलग करने जरुरी होते उसकी ताहरी (हरे चने वाला पुलाव) जो बनती थी।
भाँग की ठंडाई की भी तैयारी चलती जो मैंने कभी चखी नहीं।
बनाने का तरीका जरूर बताना है ।
अगली पोस्ट में !!
कई दिन पहले से पकवान बनने के साथ ही,पूजा की तैयारियां की जाती थी।
1 गोबर से भिन्न आकर के,बीच में छेद वाले ,छोटे कंडे बना कर सुखाये जाते और उस की माला बान से गूथ कर बनाई जाती थी।क्यों - शायद अग्यारी में परिवार का योगदान !
2 - मखानों और गोले की माला बनाना। जिसको आग में चढ़ाना और फिर प्रसाद के लिए ले लेना।
3 - गन्ने के सिरे पर गेहू ,चने की बालिया बांध देना।उनको भी भुनते और भुने दानों को छील कर खाना और खिलाना।
4 - बताशों की भी माला बनाना जो ज्यादातर होली में चढ़ा कर आते थे।
पूजा के लिए जाते समय कौन क्या उठाएगा उसकी लड़ाई का भी अपना ही आनंद होता था।होली जलाने नए दड़िये पहन कर जाते इस लिए रंग शुरू होने के पहले जोश और भागमभाग मचती!!
इस सबके साथ भुने छोलियों से हरे चने अलग करने जरुरी होते उसकी ताहरी (हरे चने वाला पुलाव) जो बनती थी।
भाँग की ठंडाई की भी तैयारी चलती जो मैंने कभी चखी नहीं।
बनाने का तरीका जरूर बताना है ।
अगली पोस्ट में !!
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