Saturday, 5 November 2016

खीर सवैया या जवे

जवे- यही कहती थी 60-70 के दशक तक महिलाये ,उनको हाथों से बहुत बारीक़ बारीक़ ,खुद ही बनाती और सुखाती थी । वेरमिसिलि मशीन से बनी सुन्दर सेवई बाज़ार में बिकने लगीं।
कुछ ही घरों में बुजुर्ग मेहनती महिलायें जवे बनाती थीं और उससे भी कम लोग उनको पसन्द से खाते थे।
मुझे लगता है 2016 में शायद ही किसी के पास समय और इतना पेशेंस है की जवे बनाये सुखाये सहेजे और फिर उसकी खीर बना कर खाये।
जिस घर में 80 साल के या 60 साल के लोग है वहाँ कभी कभार जवो को जिक्र हो जाया करता है।
अपके लिए उसको बना कर तस्वीर डाल रही हूँ।

जवे -
पुराने समय में मैदा भी आटे को बारीक़ कपड़े से कपड़छन करके निकाली जाती थी।
1 कप मैदा  को सख़्त मल कर कटोरी के निचे दबा कर रख लिया जाता था।
फिर उसमे से थोड़ा से,एक टेनिस बॉल जितना हाथ में ले कर,एक सिरे से बड़ा करते और फिर किनारे को,एक अंगुली और अंगूठे के बीच मसल कर ,बहुत बारीक़ जवे तोड़े जाते थे।उनको फिर सुखाया जाता था।
खीर बनाते समय पहले जवे घी में भूने जाते है फिर गाहढे दूध में पकाते थे।

खीर
1 लीटर दूध
1/2कप बारीक़ सेवई
1/2कप चीनी
1 चम्मच कटी मेवा
1 चुटकी पिसी इलायची

सेवई अगर भुनी है तो ठीक वर्ना कढ़ाई में सेवई को हल्के भूरे रंग में भुन लें।
दूध को उबलने रखें।4 मिनिट उबलने दें ।
उबलते दूध में भुनी सेवये डाले और गलने तक 5-7 मिनिट तक पकायें।
लगातार चलाते रहें ,ग़ाड़ी हो जाये तब तक पकायें।
आंच से हटा कर चीनी ,इलायची और मेवा मिलायें।

गरम या फ़्रिज में ठंडा करके खाएं।


रक्षा बंधन पर माथुरों में सेवई जरूर ही बनती थी।
दीवार पर दो कागज पर रक्षा बंधन के चौक लाल रंग से बनाते है।
इनमें श्रवण कुमार भी दोनों पालो में उनके माता पिता के साथ दिखाए जाते है।
उस पर राखी को सेवई से उन पर लगते है ,पूजा करते वक्त।

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