Saturday, 12 November 2016

बीज कहें अपने फल का कल



  एक कविता चिंतित मन से

               बीज कहें अपने फल का कल

पकने पर कैसा होगा फल
हर बीज कहें अपने फल का कल

सूंदर ,कोमल - चिल्लाता  जन्मे
असीमित सम्भावनाओं का उदगल

सिंचन - पोषण माली जाने समझें
पायेगा उसके   -  द्वारा अनुरूप सृजन

संसाधन-  हर बीज का हक है
बाधक क्यों ? क्रूर माली या उसका वातावरण

अप्रकृतिक जड़ -  विचिलित राहे
टेड़ी मेड़ी - दुर्गम , बार बार - आती विपदायें

आकर्षण ही समझे जड़ और चेतन मन
नियमित छटाई -  उपजाए उत्तम सर्वोत्तम फल

हर बीज   फ़ले फूले उपजाऊ धरा हो
जगमग जहाँन स्वस्थ सुन्दर संसाधन -  धन

नष्ट न हो कोई भी   बचपन
हर बीज बने फल - हर बालक को मिले सुनहरा कल !

जो हो संरक्षण की क्षमता - इच्छा
तभी बोना बीज - उपजाना फल - निभाना जिम्मेदारी !!

-------------------------------------अलका माथुर

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