एक कविता चिंतित मन से
बीज कहें अपने फल का कल
पकने पर कैसा होगा फल
हर बीज कहें अपने फल का कल
सूंदर ,कोमल - चिल्लाता जन्मे
असीमित सम्भावनाओं का उदगल
सिंचन - पोषण माली जाने समझें
पायेगा उसके - द्वारा अनुरूप सृजन
संसाधन- हर बीज का हक है
बाधक क्यों ? क्रूर माली या उसका वातावरण
अप्रकृतिक जड़ - विचिलित राहे
टेड़ी मेड़ी - दुर्गम , बार बार - आती विपदायें
आकर्षण ही समझे जड़ और चेतन मन
नियमित छटाई - उपजाए उत्तम सर्वोत्तम फल
हर बीज फ़ले फूले उपजाऊ धरा हो
जगमग जहाँन स्वस्थ सुन्दर संसाधन - धन
नष्ट न हो कोई भी बचपन
हर बीज बने फल - हर बालक को मिले सुनहरा कल !
जो हो संरक्षण की क्षमता - इच्छा
तभी बोना बीज - उपजाना फल - निभाना जिम्मेदारी !!
-------------------------------------अलका माथुर
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