Thursday, 13 October 2016

बेटी को पाती

बेटी तुमको लिखती माँ ,समझ बूझ की ये पाती !
माँ दादी को मैंने अपनी, पीड़ा में देखा था,
काश ! थोड़ा सा कुछ मैं, जान भी ,पहचान भी पाती !
समझा तो था,जाना नहीं था,समझदारी कुछ अपने लिए दिखाती !
उनके जैसी उम्र ढलेगी, हेरिडिटी मुझको भी पकड़ेगी,ऑस्टियोअर्थरिटिस होगी!

उन्होंने अपनी माँ को कब देखा था,जो यह अन्तर समझाती !
अपना ख्याल रखों चेताया था,केल्शियम खाओ,व्यायाम करो इतना कहाँ बता पातीं !!

जीवन की सीढ़ियां चढ़ती गई मै, अब ज़ीना चढ़ने को तरस जाती !
स्वाभाविक जो सहना होगा, काया का ध्यान जरुरी,किया करो बेटी !
काया ही असली माया है,उसी की परवाह क्यों नहीं करती !
आहार आकर का ध्यान रहे तो टाली जायेगी हेरिडिटी ।।

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