कुछ तो -
व्यापार से चाहतें हज़ार, इसके प्रकार कई हज़ार !
लिप्त या लुप्त होता इसमें सारा का सारा संसार ।
दुकान,मकान, सेवा,शिक्षा,धर्म,रिश्ता और देह - ,किसमे नहीं व्यापार !
चलता है,तो धन दौलत ख्याति वर्ना जीना भी दुष्वार।
ख़रीदार सदा - सही,ज्ञानी,पैनी नज़र वाला सर्वोपरि देनदार !
बात सब पर लागू, कभी चूंचूं इधर कभी दूसरी तरफ जाये किरदार ।
घर चलाने, देश बढ़ाने - अति आवश्यक होता कारोबार !
मर्यादा को तोड़ के मानव ,तुम मत करना व्यापार ।
व्यवसाय के नियम बहुतेरे , जिनमें बांध साध कर चलाओं कारोबार !
कानून तोड़ कर ही मिलेगी सफलता ये धारणा निराधार ।
उत्तराधिकारी बनने से ही नहीं मिल जायेगी सफलता !
मेहनत,शिक्षा और कौशल को समझो सही हथियार ।।
-------- अलका माथुर
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