Saturday, 22 October 2016

व्यापार या व्यवसाय

कुछ तो - 

व्यापार से चाहतें हज़ार, इसके प्रकार कई हज़ार !
लिप्त या लुप्त होता इसमें सारा का सारा संसार ।

दुकान,मकान, सेवा,शिक्षा,धर्म,रिश्ता और देह - ,किसमे नहीं व्यापार !
चलता है,तो धन दौलत ख्याति वर्ना जीना भी दुष्वार।

ख़रीदार सदा - सही,ज्ञानी,पैनी नज़र वाला सर्वोपरि देनदार !
बात सब पर लागू, कभी चूंचूं इधर कभी दूसरी तरफ जाये किरदार ।

घर चलाने, देश बढ़ाने - अति आवश्यक होता कारोबार  !
मर्यादा को तोड़ के मानव ,तुम मत करना व्यापार ।

व्यवसाय के नियम बहुतेरे , जिनमें बांध साध कर चलाओं कारोबार !
कानून तोड़ कर ही मिलेगी सफलता ये धारणा निराधार ।

उत्तराधिकारी बनने से ही नहीं मिल जायेगी सफलता !
मेहनत,शिक्षा और कौशल को समझो सही हथियार ।।

-------- अलका माथुर

No comments:

Post a Comment