Sunday, 9 October 2016

उत्तेजना (कड़वा सच)

रात दिन करता था मेहनत,गुजर बसर हो जाती थी बी बस !
थोड़े कपड़े, आधा पेट खाना,गरीब करता गुजारा जस तस!!

भुसरु का परिवार,गांव में लोगों सा ,मेल मिलाता जीता जाता !
खेत जोता ,छोटा होता,गाय सहित झोपड़ में समाता, नहीं बड़ी सी सोच!!

सौ दो सौ का लालच जागा, भुसरु रैली को उठ कर भागा !
ट्रकों में भर भर आदम ढोया, पानी बोतल केला सबको पकड़ाया !!

तीन बजे आँखे चोंधियाई, बड़ा नेता दूर से चमकता पाया !
असम्झि सुनी,धूप तेज़ी, सिर चकराया,बेकारण भगदड़ मचाया !!

भुसरु भी संग,घायल,लथपथ,बेहोशों को अस्पताल पहुचवाया !
उत्तेजित खून,गरम प्रचार,चटकीला मिडिया किसने ,क्यों बबाल मचाया !!

तार-तार उसकी इज्जत,चश्मा कहीं, सेटीस्कोप को कही उड्डाया !
सफ़ेद कोट,पुती कालिख़, सेवा  उपकार,पच्चीस बर्षो का किया कराया !!
सही ग़लत, न्याय नसीहत,इलाज अपचार ,अधिकार और जिम्मेदारी !
जीवन जुआ,अनगिनत तकरार उतेज़ना में क्यों कर बार बार बहाया ।।



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