Wednesday, 19 October 2016

प्रतिक्रियाएं ( कविता)

चंद लाइन लिख रही हूँ -

क्रियाओं की प्रतिक्रियाएं अजब - गजब हैं !
मानव करता नेक विचार ,अक्सर हो जाता उलट व्यवहार !!

गस्सा बच्चे को खिलाती माँ ,स्वयं मुँह खोले बारम्बार  ।

लड़खड़ाते देख किसी को , दूर से हाथ बड़ जाये बेकार  ।

परदे पर आती रेल देखकर, पीछे  को छिटके झटकार ।

आजू बाजू गाड़ी निकले , टेड़े हो बचता अंदर बैठा इंसान ।

पूंछ परख थोड़ी भी हो, बीमारी का न रहे नामोनिशान ।

दिल को छू जाते भाव अगर ,ख़ुशी में बहती अश्रुधार ।

दवाई खाने का नाम लिया बस ,जाता रहे सारा बुखार ।

तेज भूख में ,बड़ जाये हर खाने का स्वाद  आपार  ।
ये प्राकृतिक सी प्रति क्रियाएँ है ।

मैं पर मैं हावी हो जाये, तो वो होता अभिमान है ।
मैं कुचले जब दूजे को,वो होती हैवानियत है ।
दिल दीवाना हो जाये, तो समझो उससे प्यार हैं ।
किसी पर जाओ बलिहार ,वो ममता या भक्ति हैं ।
मन के विपरीत करना पड़े व्यवहार ,वो बेबसी है ।
मन हो जाये काबू में समझो,संयमी समझदार है ।
तन मन धन और जान की परवाह छोड़े ,वो बलिदान है ।।

जिनमे सोच विचार नहीं,जानवर सामान है ।
बिना विचारे भी जानवरों का सदा - निहित सीमित सा व्यवहार है।।

क्रियाओं की प्रतिक्रियाएं अजब गजब है।
मानव के विचारों से उपजता व्यवहार है।।

---- अलका माथुर

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