Monday, 3 October 2016

मोटापा - अलका की तरफ से कुछ

मुटापे तूने कभी न किया, किसी का भी भला ।

अंदर से खोखला रख, शारीर पर तू और लदा, और लदा
चौबीस घन्टे कवायत करती,कसरत का समय कहाँ भला !

कपड़े, हर साल छोटे को जाते,नये की हैसियत मेरी कहाँ
इसी में दबा कपड़ा थोडा,सरकाउंगी सिलाई साइड जरा  !

स्लिम ट्रिम विकनी वाली को,क्यों ताकते है मेरे सरकार
खबर नहीं थी,बीस साल में - सास सा सरूप लेगी अख्तियार !

बुखार हो या समस्या अपार, डॉक्टर को मिल जाये हथियार
वजन कम करें! वरना सारी की सारी दवाइयाँ है बेकार !!

छिपाये नहीं छिपता मोटापा, भीड़ में हो गया तमाशा जबही,
पांच मीटर थोड़ी उडी उड़ी, किसी में दबा डाली,किसी ने उड़ा ली हँसी!

मोटापे ने पकड़ा व्यापार, कम करने को इश्तिहारों से भरा अख़बार
बजट में मेरे केवल आ पा एगा, एक रंदा बहुत तेज़ धार !!!!

मोटापे तूने कभी न किया मेरा भला !
आज शुरू करवा दे,यहॉ से हँसी का सिला!!


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ये सिर्फ एक व्यंग्य है कृपया किसी से समानता होने व् लगने पर  अन्यथा न लें।मेरा इरादा सिर्फ और सिर्फ रचना का है ,हँसाने का है किसी को भी चोट पहुँचाने का नहीं ।
अलका

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