Monday, 26 September 2016

खाने की थाली

कृपया ध्यान दें -

सजाती रोज़ रोज़  खाने की थाली !
जैसी जिसको भाती घर में,निभाती रीत नियमावली
नित सजाती खाने की थाली !
समय बदला, नॉकरी की भी उसने बागडोर संभाली
फिर भी सजाती खाने की थाली !
ता उम्र,बेनागा, चारों पहर रसोई कभी न हुई खाली
नियमित सजोए ,खाने की थाली !
पचास- पचपन ,कमर झुकी सी,घुटने हुए ख़ाली
खुद ही बनती वो, रसोई और थाली !
थकान, दर्द या कंगाली उसको कभी नहीं रोक पाती
सब छिपा जाती उसके खाने की थाली !
ग्रह लक्ष्मी,घरवाली,माँ,दादी,नानी,ताई या चाची रिश्ता बदलती
बिना भेदभाव ,वही सबको दे ,खाने की थाली !

चंदू चाचा हुए रिटायर,विचलित चाची हुई बिचारी
बार बार चाय बनेगी ,सजेंगी मजलिस रोज ख़ाली
चाची की भी उम्र ढलेगी ,शरीर की होगी बदहाली
आराम मिले न मिले,खोजेगी सदा इनामी,खुशहाली
सजाती रहेंगी रोज यूँ ही खाने की थाली !!

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